पाकिस्तान के परमाणु हथियारों तक पहुंच गया था भारत, फिर अचानक सीज़फायर 

  • [By: PK Verma || 2025-05-12 16:53 IST
पाकिस्तान के परमाणु हथियारों तक पहुंच गया था भारत, फिर अचानक सीज़फायर 

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 मासूम टूरिस्ट्स की आतंकी हमले में हत्या कर दी गई।  इस घटना ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को उच्च चरम पर पहुंचा दिया। पहलगाम में हुए इस हमले के जवाब में भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत 7 मई को पाकिस्तान में स्थित कई आतंकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई शुरू की। इस कार्रवाई का सबसे बड़ा और चौंकाने वाला हिस्सा था 10 मई को पाकिस्तान के नूर खान एयरबेस पर भारत का सटीक मिसाइल हमला। नूरखान एयरबेस पर हुए भारतीय हमले से पाकिस्तान बुरी तरह से घबरा गया। भारतीय सेना के इस हमले ने न केवल पाकिस्तान की सैन्य ताकत को झकझोर दिया, बल्कि उसके परमाणु हथियारों की सुरक्षा पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया। 

ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान के नूरखान एयरबेस के अलावा चकवाल में मुरीद, शोरकोट में रफीकी, और रहीम यार खान जैसे अन्य अहम् एयरबेसों पर भी बड़े हमले किए। इन हमलों में भारत ने आतंकी ठिकानों, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के शिविरों को भी नष्ट किया। भारतीय सेना के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने दावा किया कि इन हमलों में 100 से अधिक आंतकवादियों को मार गिराया गया। इसके साथ ही भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान की और से होने वाला कोई भी आतंकी हमला अब 'एक्ट ऑफ वॉर' माना जाएगा, जिससे भविष्य में ऐसी कार्रवाइयां और सख्त हो सकती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ़ कह दिया कि अगर उधर से गोली चली तो इधर से गोला चलेगा। 

दूसरी और रक्षा मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर्नल सोफिया कुरैशी ने पाकिस्तान के दुष्प्रचार को खारिज करते हुए भारत की कार्रवाई को आतंकवाद के खिलाफ बिलकुल सही और जायज ठहराया।

पाकिस्तान के नूरखान एयरबेस पर हुए भारतीय सेना के हमले के बाद 10 मई की शाम को अचानक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता से दोनों देशों ने सीजफायर की घोषणा की। जबकि दो दिन पहले अमेरिका ने भारत पाकिस्तान के संघर्ष पर खुद को दूर कर लिया था। फिर अचानक अमेरिका भारत-पाकिस्तान युद्ध में क्यों चौधरी बनकर कूद पड़ा। 

लेकिन पाकिस्तान के नूरखान एयरबेस पर हुए भारतीय सेना के हमले के बाद इस सीजफायर की घोषणा के पीछे नूरखान एयरबेस की तबाही और पाकिस्तान के परमाणु कमांड सेंटर पर मंडराते खतरे की कहानी छिपी है। जिससे पाकिस्तान अंदर तक कांप गया। और उसने तुरंत अमेरिका से पाकिस्तान को बचाने के लिए गुहार लगाई। 

दरअसल पाकिस्तान के नूरखान एयरबेस को पहले चकला एयरबेस के नाम से जाना जाता था। यह पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से मात्र 10 किलोमीटर दूर रावलपिंडी में स्थित है। यह पाकिस्तान वायुसेना का एक प्रमुख लॉजिस्टिक हब है, जो वीआईपी मूवमेंट, टोही मिशन, और लंबी दूरी की मिसाइलों के संचालन का केंद्र है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह नूरखान एयरबेस पाकिस्तान के स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिविजन और नेशनल कमांड अथॉरिटी के मुख्यालय के बेहद करीब है, जो देश के लगभग 170 परमाणु हथियारों की सुरक्षा और संचालन का जिम्मा संभालता है। इसीलिए इस एयरबेस की तबाही और बर्बादी के साथ ही पाकिस्तान घुटनों पर आया और भारत से युद्ध रोकने की गुहार लगाने लगा। 

दरअसल 10 मई 2025 की सुबह भारत ने ब्रह्मोस, हैमर, और स्कैल्प मिसाइलों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान स्थित नूरखान एयरबेस पर सटीक हमला किया। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह हमला इतना घातक था कि पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम इसे ट्रैक करने में पूरी तरह नाकाम रहे। हमले में एयरबेस का महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा तबाह हो गया, और पाकिस्तानी सेना में हड़कंप और खलबली मच गई। इस हमले ने पाकिस्तान को यह एहसास कराया कि भारत की मिसाइलें उसके सबसे संवेदनशील सैन्य ठिकानों तक पहुंच सकती हैं। और पाकिस्तान को खाक में मिला सकती है। 

परमाणु कमांड सेंटर पर खतरा: रावलपिंडी स्थित नूरखान एयरबेस से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित पाकिस्तान का परमाणु कमांड सेंटर इस हमले के दायरे में आ गया था। न्यूयॉर्क टाइम्स और अन्य मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह हमला भारत की ओर से एक रणनीतिक संदेश था कि वह पाकिस्तान के परमाणु कमांड को 'डिकैपिटेट' यानि निष्क्रिय करने की क्षमता और ताकत रखता है। 

स्वीडन के थिंक टैंक SIPRI की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास 172 परमाणु वॉरहेड हैं, जबकि पाकिस्तान के पास 170 हैं। पाकिस्तान ने 'फर्स्ट यूज' नीति अपनाई है, यानी वह जरूरत पड़ने पर पहले परमाणु हमला कर सकता है। जबकि भारत की 'नो फर्स्ट यूज' नीति केवल आत्मरक्षा के लिए परमाणु हथियारों के उपयोग की अनुमति देती है। नूरखान एयरबेस पर भारतीय सेना के हमले ने यह साबित कर दिया कि भारत पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को निष्क्रिय करने की क्षमता रखता है, जिसने पाकिस्तान की परमाणु बम हमले की धमकियों को खोखला साबित कर दिया।

एक पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने कहा, "पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता यही थी कि भारत उसकी परमाणु कमान को नष्ट न कर दे। नूरखान एयरबेस पर भारतीय सेना का जबरजस्त हमला इसी दिशा में पहला कदम हो सकता था।"

इन मीडिया रिपोर्टों में ये भी दावा किया गया कि भारत की ब्रह्मोस मिसाइल अगर 1-2 किलोमीटर और सटीक निशाना लगाती, तो पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के जखीरे में विस्फोट और रेडिएशन की स्थिति पैदा हो सकती थी। हालांकि, ये दावे स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं हुए हैं और न ही भारत की ओर से ऐसी कोई पुष्टि की गई है। फिर भी, इस हमले ने पाकिस्तान के सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व में दहशत पैदा कर दी। कुछ खबरों की मानें, तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तत्काल NCA की बैठक बुलाई थी, जो परमाणु हथियारों के उपयोग पर निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है। हालांकि बाद में पाकिस्तानी मंत्री ने दावा किया कि ऐसी कोई बैठक नहीं हुई।

नूरखान एयरबेस पर भारतीय सेना के जबरजस्त हमले की खबर ने अमेरिका को भी हिलाकर रख दिया। नईयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी सरकार इस विवाद में हस्तक्षेप करने से बचती रही। लेकिन परमाणु युद्ध की आशंका ने उन्हें भी मजबूर कर दिया कि वह सक्रिय रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करें। इसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि भारत सीधे पाकिस्तान के परमाणु हथियारों तक पहुंच गया था। 

रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार रात को पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित नूरखान एयरबेस पर विस्फोट होने से स्थिति और नाजुक हो गई। यह बेस न केवल पाकिस्तान की वायुसेना का एक प्रमुख परिवहन केंद्र है, बल्कि यह उसके परमाणु हथियारों की सुरक्षा से जुड़ी 'स्ट्रेटेजिक प्लान्स डिवीजन' के मुख्यालय के निकट स्थित है।

9 मई की देर रात अमेरिका को एक खतरनाक खुफिया जानकारी मिलती है कि जिसके तहत दक्षिण एशिया में परमाणु संघर्ष की आशंका को बढ़ा दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तुरंत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की और तनाव कम करने के लिए सीजफायर की पहल की।

पाकिस्तान ने भी भारत के नूरखान एयरबेस पर हमले के बाद तुरंत अमेरिका से संपर्क किया। पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के बीच बातचीत को सीजफायर की दिशा में पहला कदम माना गया। 10 मई की शाम 5 बजे, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर की घोषणा की, जिसे भारत और पाकिस्तान ने तुरंत मान लिया।

एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि अगर तुरंत हस्तक्षेप नहीं होता, तो हालात पूर्णयुद्ध की ओर बढ़ सकते थे। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी माना कि अमेरिका के हस्तक्षेप, खासकर मार्को रुबियो की भूमिका ने भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष को थामने अहम् भूमिका अदा की। 

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, "हम क्षेत्र में शांति लाने में अमेरिका और राष्ट्रपति ट्रंप की नेतृत्व क्षमता की सराहना करते हैं।" भारत की ओर से हालांकि अमेरिकी प्रयासों की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई।

पाकिस्तानी अधिकारियों ने यह भी आरोप लगाया कि भारत जानबूझकर उसे जवाबी कार्रवाई में एफ-16 लड़ाकू विमान इस्तेमाल करने के लिए उकसा रहा था, ताकि भारत उसे मार गिराकर अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रक्षा संबंधों को प्रभावित कर सके। ग़ौरतलब हैं कि एफ-16 फाइटर प्लेन अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को उसकी "मेजर नॉन-नाटो एलाय" की स्थिति के तहत दिए गए थे।

पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में भारतीय हवाई क्षेत्र में 400 ड्रोन भेजने की कोशिश की, लेकिन भारतीय वायुसेना ने इन्हें नाकाम कर नेस्ताबूत कर दिया। पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम भारत की मिसाइलों को रोकने में पूरी तरह विफल रहा, जिसने उसकी सैन्य कमजोरियों को उजागर किया। इसके अलावा, रावलपिंडी स्थित नूरखान एयरबेस की तबाही ने पाकिस्तान को आर्थिक और कूटनीतिक रूप से भी बैकफुट पर ला दिया। 

दूसरी और भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित करने की चेतावनी दी, जो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका हो सकता है। और पाकिस्तान को और कंगाल बना सकती है। 

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